रविवार, 9 जून 2013

ये ख़ून नज़र किसका...

यूँ तो हर एक हाथ उठा है दुआ में
तेज़ाब किसने फिर ये फेंका है हवा में

क्या बात है कि जिससे बरहम है ज़माना
हर सिम्त कोई खौफ़ सा उठा है फ़िज़ा में

जो पीर थी हमारी धू-धू के जल रही
पर ध्यान अब भी उनका ज़्यादा है अदा में

बरसात का है मौसम बादल हैं तुम्हारे
ये ख़ून नज़र किसका आता है घटा में

घर से थे पाँव निकले मंजिल के सफ़र पे
हर मोड़ इस सफ़र का काटा है गुमां में

'साहिल' सुनो की लहरें ख़ामोश हैं बहुत
कोई नाला मगर इनका आता है सदा में।

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