हर तरफ बर्बर शिकारी घात में, क्या करें
रास्ते पर ही चलें या ओट में, क्या करें
संवेदनाएं लुट गईं उस महजबीं के साथ कल
आज बस कुछ चीथड़े हैं हाथ में, क्या करें
इक दिन पहनकर देखिए शर्म-ओ-हया
भूलकर सारी नसीहत पूछोगे, क्या करें
न छुई उंगली भी तो क्या फ़र्क है
तन-बदन नजरों से है छलनी किया, क्या करें
दर्द कुछ ऐसा है कि किससे कहें
मरहम लगाते हाथ में भी है सुआ, क्या करें
है एक दुश्मन, दोस्त इक, इक अजनबी
सबका मक़सद एक है बस लूटना, क्या करें
जब तक सलामत वो नहीं पहुंचा उधर
इस तरफ बढ़ती रही बेज़ारगी, क्या करें
सबकी ज़ुबां पर जिक्र है, ऐसा हुआ
कोई ये कहता नहीं क्योंकर हुआ, क्या करें
बाद उसके जाने के आलम था ये
भटका किये, सोचा किये हम हर घड़ी, क्या करें
MAZA NAHI AAYA
जवाब देंहटाएंKYA KAREN