शुक्रवार, 24 अप्रैल 2009

चुनावी मंगल गान...

चुनाव की बेला है, हर जगह प्रत्याशी मतदाताओं को लुभाने में लगे हैं, और "बेचारा आम आदमी" किसी विरहिणी की तरह सशंकित है। चुनावी सजन के लिए मन की आशंकाओं को व्यक्त करता एक मंगल गान -


मंगल गाओ री सजन घर आए

सजन घर आए, बलम घर आए
कर मीठी बतियाँ मोहे ललचाए
मोरा मन भरमाए
सखी री सजन घर आए

पैयाँ पड़े मोरे करे मोसे विनती
कहे तोरा साथ न छोडूं मैं अबकी
कपटी कहीं न फिर लूट ले जाए
मोरा मन घबराए
सखी री सजन घर आए

सतरंगी सपनों की लाए चुनरिया
महल छोड़ रहे मोरी छपरिया
बड़ी प्रीत से मोरी पूछे खबरिया
फिर न कहीं बिसराए
सखी री सजन घर आए.

2 टिप्‍पणियां:

  1. vaah vaah
    sirf isliye nahi ki comment karna hai balki mera gambhirata se maanana hai ki is samay gaye ja sakne vaale giiton aur lokshailiyon me logon tak baat pahunchana ek behad zaruri kaam hai.
    isiliye mujhe yah mahatvapurna lagata hai.

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  2. सतरंगी सपनों की लाए चुनरिया
    महल छोड़ रहे मोरी छपरिया
    बड़ी प्रीत से मोरी पूछे खबरिया
    फिर न कहीं बिसराए
    सखी री सजन घर आए.

    Waah.....!
    Bahut hi pyara geet.......!

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